
मेरे प्रेरणास्त्रोत संत शिरोमणि भगवन आचार्यश्री 108 श्री विद्या सागर जी महाराज
India नहीं भारत बोलो ... आचार्यश्री का प्रयास सफल l
हिन्दी भारत की बिंदी ... यह प्रयास भी जल्दी सफल होगा l
मूक माटी महाकाव्य ने हिन्दी – साहित्य और हिन्दी जगत में आचार्यश्री को काव्य की आत्मा तक पहुंचा दिया, आपका जन्म अश्विनी शरद पूर्णिमा संवत् 2003 तदनुसार 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक प्रांत के बेलग्राम जिले के सु-प्रसिद्ध सदलगा ग्राम में, श्रेष्ठी श्री मलप्पा पारसप्पा जी अष्टगे के घर हुआ l जन्म का नाम विद्याधर था तथा बचपन से ही आपका स्वभाव धार्मिक विचारो से ओतप्रोत रहा l
वास्तविक शिक्षा तो ब्रम्हचारी अवस्था में मुनि विद्यासागर जी के रूप में गुरुवर श्री ज्ञान सागर जी महाराज के सानिध्य में पूरी हुई l आचार्यश्री प्राकृत, अपभ्रंश, कन्नड़, मराठी, हिन्दी तथा बँगला एवं अंग्रेजी के ज्ञाता है l भारत-भू पर सुधारस की वर्षा करने वाले आचार्यश्री के व्यक्तित्व में विश्व बंधुत्व, मानवता तथा india से भारत कहने की प्रेरणा भरने वाले, हिन्दी के पुर्न:उत्थान पर जोर देनें वाले आचार्यश्री के हिन्दी अभियान से सोंधी – सोंधी सुगंध आती है l
शिक्षा के क्षेत्र में आचार्य जी ने बहुत बड़ी शुरुआत की है l आज अनेक शिक्षण, प्रशिक्षण, संस्थान संचालित हो रहे है l प्रशासनिक संस्थान जबलपुर एवं दिल्ली जिसमे अनेक IAS, कलेक्टर आदि अपनी सेवाएँ दे रहे है l विशेषकर गुरुकुल पद्धति पर आधारित 5 आवासीय विद्यालय उनकी समर्पित शिष्यों द्वारा संचालित है प्रतिभा स्थली विद्यापीठ इंदौर, जबलपुर, रामटेक (महाराष्ट्र) डोंगरगढ़ (छत्तीसगढ़) पपौरानी (म.प्र.) है l
साहित्य के क्षेत्र में आपने अनेकों कृतियां लिखी है l चिकित्सा के क्षेत्र में भाग्योदय तीर्थ सागर में सभी आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं से परिपूर्ण है l
भाषा बचेगी, देश बचेगा l
देश बचेगा, हम बचेंगे l
राष्ट्रहित में युगांतरकारी हिन्दी की मशाल को पुन: प्रज्ज्वलित करने के लिए आचार्यश्री अथक प्रयास कर रहे है l आचार्यश्री की प्रेरणा मेरी दीवानगी की परिकाष्ठा यह रही की मैंने शासकीय नौकरी छोड़कर शेष पूरा जीवन आचार्यश्री के हिन्दी अभियान को समर्पित कर दिया है l विश्वास है कि आचार्यश्री कश्मीर से कन्याकुमारी तक हिन्दी विकास यात्रा निकालने, जैन धर्म के नियमो के प्रचार – प्रसार के लिए आशीष प्रदान करेंगे l जयजिनेन्द्र l